Posts

Showing posts from August, 2021

सफलता की कुंजी

Image
संघर्ष करना ही सफलता ही कुंजी है। कर्म करना ही,परिश्रम की पूंजी है।। उत्साह भरी आशाएं, हरपल होनी चाहिए। करे स्पर्श न निराशाएं मधुमय जीवन बनाइए ।। शक्तिपुंज हो ह्रदय में, ऐसा दीप जलाइये। आत्मनिर्भता जन-जन में, ऐसा उल्लास जगाइये।। कर्म करना छोड़ कर, भाग्य के बल मत जिये। भविष्य उज्जवल के लिए, कर्म करके देखिए।। कर्म ही पूजा है, कर्म ही है खुदा। कर्म ही शक्ति है, जिससे नहीं जुदा।। असफलता से घबरा, दूर मत भागिये। सफलता हेतु, प्रयत्न करना चाहिए।। भाग्य यूँ बदल जायेगा, इरादों पे भरोसा कीजिये। दूसरों की प्रगति देख, स्वयं उन्नति कीजिये ।। डागर -डागर, बाट- बाट, कदम मिलाते जाइये। हर. कदम पे एक मुसाफिर , ‌ सफर करता पाइये ।। कर्तव्य पथ से मुख न मोड़ो, जीवन से नाता जोड़ो। मन्दिर- मस्जिद मत तोड़ो, ऊँच- नीच की दीवारें तोड़ो।। दुशमनी की जड़ो को , उखाड़ फेंको । मित्रता का हाथ जोड़ो, ऐ मेरे दोस्तों ! दोस्ती मत छोड़ो।10। मुकेश कुमार हमें विश्वास है कि हमारे पाठक स्वरचित रचनाएं ही इस कॉलम के तहत प्रकाशित होने के लिए भेजते हैं। हमारे इस सम्मानित पाठक का भी दावा है कि यह रचना स्वरचित है।

कविता - बसंती हवा

हवा हूँ, हवा मैं बसंती हवा हूँ। सुनो बात मेरी - अनोखी हवा हूँ। बड़ी बावली हूँ, बड़ी मस्तमौला। नहीं कुछ फिकर है, बड़ी ही निडर हूँ। जिधर चाहती हूँ, उधर घूमती हूँ, मुसाफिर अजब हूँ। न घर-बार मेरा, न उद्देश्य मेरा, न इच्छा किसी की, न आशा किसी की, न प्रेमी न दुश्मन, जिधर चाहती हूँ उधर घूमती हूँ। हवा हूँ, हवा मैं बसंती हवा हूँ! जहाँ से चली मैं जहाँ को गई मैं - शहर, गाँव, बस्ती, नदी, रेत, निर्जन, हरे खेत, पोखर, झुलाती चली मैं। झुमाती चली मैं! हवा हूँ, हवा मै बसंती हवा हूँ। चढ़ी पेड़ महुआ, थपाथप मचाया; गिरी धम्म से फिर, चढ़ी आम ऊपर, उसे भी झकोरा, किया कान में 'कू', उतरकर भगी मैं, हरे खेत पहुँची - वहाँ, गेंहुँओं में लहर खूब मारी। पहर दो पहर क्या, अनेकों पहर तक इसी में रही मैं! खड़ी देख अलसी लिए शीश कलसी, मुझे खूब सूझी - हिलाया-झुलाया गिरी पर न कलसी! इसी हार को पा, हिला